NEW DELHI: Premier Brands, which had threatened to pull the plug on its licensing and merchandising deal for the Commonwealth Games due to the shambolic functioning of the organising committee, now confirms that it will honour its commitment, despite the projected loss it would incur.
Suresh Kumar, chairman, Premier Brands confirmed to SportzPower: “Yes, we are now staying with merchandising and licensing for the Games and August 31 is the official date for launching.”
Asked whether this time the date is final – the formal launch has been postponed four times in the past Kumar stressed, “Yes, yes this time it is 100 per cent confirmed that on August 31 we will be officially launching the programme.”Kumar, however, refused to offer any comment as to whether the terms of the deal had been reworked, saying: “We can’t disclose any financial details right now. For that you can ask the OC.
"One thing is clear, that there is revenue loss in respect of our expectations, but we are committed to work for the Games.“All other things are already finalized and we are working according to the same module.”
Sunday, August 29, 2010
राष्ट्रभाषा, राजभाषा, राष्ट्रमंडल खेल और राष्ट्रीय गौरव-डॉ. अशोक प्रियरंजन
किसी भी देश की अंतरराष्ट्रीय भाषाई पहचान के लिए जरूरी है कि उसकी एक राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। यह भाषा ऐसी हो, जिसे सीखने, उसका साहित्य पढऩे की ललक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए। भारत के संदर्भ में यह विचारणीय विषय है कि अभी तक यहां हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल सका है जबकि पूरी दुनिया में यह एक लोकप्रिय भाषा के रूप में उभरकर सामने आई है। इसकी लिपि सर्वाधिक वैज्ञानिक है। हिंदी का साहित्य बहुत समृद्ध है। बहुत बड़ी संख्या में हिंदी बोलने वाले लोग है। मारीशस, फिजी,सिंगापुर, कनाडा आदि में तो हिंदी के प्रति व्यापक रुझान दिखाई देता है।
भारत में हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया है लेकिन इसके व्यापक उपयोग को लेकर सरकार की उदासीनता दिखाई देती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हिंदी केप्रति बरती जा रही उदासीनता है।संसद में भी राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी को बढ़ावा देने की मांग उठ चुकी है लेकिन आयोजक और सरकार नहीं चेती है। राजभाषा समर्थन समिति मेरठ इस दिशा में पहल करते हुए जनआंदोलन के तेवर अख्तियार किए हुए है लेकिन इसमें अन्य संगठनों की भागीदारी और व्यापक जनसमर्थन की जरूरत है।राष्ट्रमंडल खेलों में राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देना इसलिए भी जरूरी है कि उस दौरान कई देशों के लोग आयोजन में शामिल होंगे। उन्हें न केवल भारतीय संस्कृति की जानकारी दी जाए बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रही राजभाषा हिंदी से भी परिचय कराया जाना चाहिए। ऐसा करके राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाया जा सकता है। इस सत्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि देश में हिंदी बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक है और पूरी दुनिया में हिंदी को लेकर व्यापक संभावनाएं परिलक्षित हो रही हैं। फिर देश के भाषाई गौरव केशिखर पर हिंदी को प्रतिष्ठित करने में देरी क्यों? राष्ट्रमंडल खेलों के माध्यम से हिंदी को बढ़ावा देना समय की जरूरत है। इसकेलिए राजभाषा समर्थन समिति मेरठ के सुझावों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
समिति के सुझाव हैं-
1. राष्ट्रमंडल खेलों की वेबसाइट हिंदी में तुरंत बनाई जाए।
2. दिल्ली पुलिस और नई दिल्ली नगरपालिका द्वारा सभी नामपट्टों व संकेतकों
में हिंदी का भी प्रयोग हो ।
3. राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान वितरित की जाने वाली सारी प्रचार सामगी
हिंदी में भी तैयार की जाए।
4. राष्ट्रमंडल खेलों के आंखों देखे हाल के प्रसारण की व्यवस्था हिंदी में भी हो।
5. पर्यटकों व खिलाडियों के लिए होटलों व अन्य स्थानों हिंदी की किट भी
वितरित की जाए।
6. उदघाटन व समापन समारोह भारत की संस्कृति व भाषा का प्रतिबिम्बित करते
हों। सांस्कृतिक कार्यक्रम देश की गरिमा के अनुरूप हों। राष्ट्रपति ,
प्रधानमंत्री व अन्य प्रमुख लोग अपनी भाषा में विचार व्यक्त करें।
7. राष्ट्रमंडल के देशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्ययोजना
तैयार की जाए।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
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