सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा वरदान भी अभिशाप भी
उमेश कुमार राय
एक दूसरे से संवाद का आदान-प्रदान करने के लिए कभी कबूतरों और डाकियों के जरिये पत्र भेजे जाते थे। एक पत्र को एक आदमी से दूसरे आदमी तक पहुँचने में महीनों लग जाते थे। पत्र का जवाब पाने के लिए भी महीनों इंतजार करना पड़ता था लेकिन आज सात समंदर पार बैठे लोगों के साथ सीधे बात की जा सकती है। अपना दर्द बयाँ किया जा सकता है। अपने आसपास के माहौल से अवगत करवाया जा सकता है। कहा जाये तो आज पूरी दुनिया मुट्ठी में समा गयी है और इसका पूरा श्रेय जाता है सोशल मीडिया को।
आक्सफोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक, ऐसी वेबसाइट और एप्लिकेशंस जो यूजरों (उपभोक्ताओं) को सामग्रियाँ तैयार करने और उसे साझा करने में समर्थ बनाये या सोशल नेटवर्किंग में हिस्सा लेने में समर्थ करे उसे सोशल मीडिया कहा जाता है। वीकिपीडिया के मुताबिक, सोशल मीडिया लोगों के बीच सामाजिक विमर्श है जिसके तहत वे परोक्ष समुदाय व नेटवर्क पर सूचना तैयार करते हैं, उन्हें शेयर (साझा) करते हैं या आदान-प्रदान करते हैं। कुल मिलाकर सोशल मीडिया या सोशल नेटवर्किंग साइट्स ऐसा इलेक्ट्रानिक माध्यम है जिसके जरिये लोग उक्त माध्यम में शामिल सदस्यों के साथ विचारों (इसमें तस्वीरें और वीडियो भी शामिल है) का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
विश्वभर में लगभग 200 सोशल नेटवर्किंग साइट्स हैं जिनमें फेसबुक, ट्वीटर, आर्कुट, माई स्पेस, लिंक्डइन, फ्लिकर, इंस्टाग्राम (फोटो, वीडियो शेयरिंग साइट्स) सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। एक सर्वे के मुताबिक विश्वभर में संप्रति 1 अरब 28 करोड़ फेसबुक यूजर्स (फेसबुक इस्तेमाल करने वाले) हैं। वहीं,विश्वभर में इंस्टाग्राम यूजरों की संख्या 15 करोड़, लिंक्डइन यूजरों की संख्या 20 करोड़, माई स्पेस यूजरों की संख्या 3 करोड़ और ट्वीटर यूजरों की संख्या9 करोड़ है।
सोशल मीडिया का जन्म 1995 में माना जाता है। उस वक्त क्लासमेट्स डॉट कॉम से एक साइट शुरू की गयी थी जिसके जरिये स्कूलों, कॉलेजों, कार्यक्षेत्रों और मिलीटरी के लोग एक दूसरे से जुड़ सकते थे। यह साइट अब भी सक्रिय है। इसके बाद वर्ष 1996 में बोल्ट डॉट कॉम नाम की सोशल साइट बनायी गयी। वर्ष 1997 में एशियन एवेन्यू नाम की एक साइट शुरू की गयी थी एशियाई-अमरीकी कम्यूनिटी के लिए। सोशल मीडिया के क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव आया फेसबुक और ट्वीटर के आने से फेसबुक का जन्म 4 फरवरी 2004 में हुआ। मार्क जकरबर्ग ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए फेसबुक को डेवलप किया था। धीरे-धीरे इसका विस्तार दूसरे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक हुआ और वर्ष 2005 में अमरीका की सरहद लाँघ कर यह विश्व के दूसरे देशों में पहुँच गया। ऐसी ही कहानियाँ दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भी हैं।
शुरू में ये साइट्स मध्यवर्ग की पहुँच से दूर थे लेकिन मोबाइल फोन पर जब ये सेवाएँ मिलनी शुरू हुईं तो इस वर्ग ने इसे अपने सीने से लगा लिया। पिछले वर्ष अप्रैल में जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में लगभग 1 करोड़ एक्टिव फेसबुक यूजर्स हैं और आने वाले समय में इनकी संख्या 10 करोड़ तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है।
सोशल मीडिया इन दिनों लोकप्रियता के सोपान चढ़ रही है-भारत में और भारत के बाहर भी। विशेषज्ञ मानते हैं कि सोशल मीडिया आम जनता के लिए ऐसा माध्यम है जिसके जरिये वे अपने विचार ज्यादा सशक्त तरीके से रख सकते हैं। नेताजी सुभाषचंद्र की गुमशुदगी पर दी बीगेस्ट कवरअप नाम की पुस्तक लिखने वाले लेखक और जर्नलिस्ट अनुज धर कहते हैं, पिछले एक दशक में कई बड़ी खबरें सोशल मीडिया के जरिये ही लाइमलाइट में आयीं। आम आदमी को सोशल मीडिया के रूप में ऐसा टूल मिल गया है जिसके जरिये वे अपनी बात एक बड़ी आबादी तक पहुँचा सकते हैं। अनुज धर की बात सच भी है, तभी तो आम आदमी के साथ राजनेता भी फेसबुक, ट्वीटर पर आ गये हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, वित्तमंत्री अरुण जेटली, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राजनाथ सिंह समेत तमाम नेताओं ने फेसबुक और ट्वीटर पर अपने अकाउंट्स बना लिये ताकि वे सीधे आम लोगों के साथ संपर्क साध सकें। लोकसभा चुनाव से पहले राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी ट्वीटर पर आने की घोषणा की थी।
सोशल साइट्स की लोकप्रियता ही है कि कभी कम्प्यूटर का भारी विरोध करने वाले वामपंथी नेताओं को भी लोकसभा चुनाव के दौरान फेसबुक पर आना पड़ा। माकपा नेता और सांसद मो. सलीम मानते हैं कि लोगों के संवाद करने के लिए सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण माध्यम है। उनका कहना है, सोशल मीडिया आज बहुत ही जरूरी माध्यम हो गया है। इस माध्यम के जरिये एक बड़ी आबादी से अपने विचार साझा किये जा सकते हैं। पिछले एक दशक में इस माध्यम का काफी विस्तार हुआ है। हालांकि वे मानते हैं कि राजनीति और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जनता से सीधे संपर्क साधना चाहिए न कि परोक्ष माध्यम के जरिये। उन्होंने कहा, सोशल मीडिया के जरिये लोगों से संपर्क तो हो सकता है लेकिन उनकी समस्याओं के बारे में पता नहीं चल सकता है खासकर ग्रमीण भारत में क्या चल रहा है, यह तो उनके पास जाकर ही जाना जा सकता है।
हाल के वर्षों में कई बड़े आन्दोलन सोशल मीडिया द्वारा ही शुरू किये गये। वर्ष 2011 के जनवरी महीने में फेसबुक के द्वारा ही मिस्त्र में जबरदस्त आन्दोलन किया गया। ट्यूनिशिया में भी फेसबुक के जरिये ही वहाँ की सरकार के खिलाफ आम जनता लामबंद होने लगी। हालात ऐसे हो गये कि सरकार को फेसबुक और ट्वीटर अकाउंट्स पर प्रतिबंध लगाना पड़ा लेकिन आन्दोलन नहीं रुका और वहाँ के प्रेसिडेंट मुबारक को मजबूर होकर इस्तीफा दे देना पड़ा।
सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के चुनाव में भारी सफलता मिली तो इसका श्रेय फेसबुक को भी जाता है। अपने देश में लोकसभा चुनाव को लेकर फेसबुक के जरिये भी खूब प्रचार हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ माह पहले सभी मंत्रालयों और मंत्रियों को सोशल मीडिया पर आने को कहा ताकि मंत्रालय के कामकाज के बारे में लोग जान सकें और काम में भी पारदर्शिता बनी रहे। फेसबुक ने लंबे अरसे से बिछड़े पिता-बेटी, भाई-बहन और दोस्तों को मिलवाने का भी काम किया।
कहते हैं कि हर चीज के दो पहलू होते हैं-अच्छा और बुरा। कई तरह की खूबियों के लिए प्रसिद्धी पाने वाली सोशल मीडिया अपवाद नहीं है।
सोशल मीडिया के जरिये आपराधिक गतिविधियों को को भी अंजाम दिये जाने लगा है। वर्ष 2013 में देशभर में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट और इंडियन पैनल कोड की धाराओं के तहत 5212 मामले दर्ज किये गये थे। इनमें से 1203 मामले सोशल साइट्स पर आपत्तिजनक सामग्रियाँ डालने से संबंधित हैं। आपराधिक प्रवृत्ति के लोग येन-केन-प्रकारेण दूसरों के अकाउंट्स को हैक कर आपत्तिजनक तस्वीरें और अन्य सामग्रियाँ डालकर दुश्मनी निकाल रहे हैं।
इधर, कम उम्र के बच्चों ने भी फेसबुक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है जिसका उन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। पिछले दिनों ऐसोचैम की ओर से किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक, जितने बच्चे फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे हैं उनमें से 73 प्रतिशत बच्चों की उम्र 8 से 13 साल (13 साल से कम उम्र के बच्चों पर फेसबुक अकाउंट खोलने पर प्रतिबंध है) के बीच है। सर्वे में कहा गया है कि अधिकांश बच्चों के परिजन नौकरीपेशा हैं और वे अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं लिहाजा ये बच्चे फेसबुक और अन्य सोशल साइट्स पर मशगूल रहने लगे हैं क्योंकि सोशल मीडिया उन्हें एक ऐसा समाज देता है जिससे वे अपनी बातें शेयर कर सकते हैं।
सोशल साइट्स के इस्तेमाल के मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी खतरनाक हैं। मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के ज्यादा इस्तेमाल करने से लोग को इसका नशा लग जाता हैऔर वे अपने परिवार के प्रति प्रतिबद्धता छोड़कर घंटों कम्प्यूटर या मोबाइल फोन से चिपके रहते हैं। एसएसकेएम अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक सुजीत सारखेल ने कहा, सोशल मीडिया एक परोक्ष माध्यम है। इसके इस्तेमाल से लोग परोक्ष रूप से तो लोगों से जुड़े रहते हैं लेकिन वो जो असल समाज है उससे वे अलग-थलग पड़ जाते हैं। इसका असर यह होता है कि उनमें सामाजिक गुणों का विकास नहीं हो पाता है। दूसरी तरफ सोशल मीडिया में लोग अधिक व्यस्त रहते हैं जिससे वे आउटडोर एक्टिविटी नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा अधिक देर तक बैठे रहने के कारण कई तरह की शारीरिक बीमारियाँ भी हो जाया करती हैं। सारखेल ने कहा, हाल ही में मेरे पास 3-4 मामले आये हैं जो सोशल मीडिया के एडिक्शन से जुड़े हैं। मरीजों का कहना है कि वे 10 से 12 घंटे इंटरनेट करते हुए बिताते हैं। यह नशा इतना सिर चढ़कर बोलता है कि वे अपने परिवार को समय नहीं दे पा रहे हैं। उनके परिवार वाले जब इसका विरोध करते हैं तो वे आक्रामक हो जाते हैं और तो और अगर इंटरनेट ठीक से काम नहीं करता है तो वे गुस्से में आकर घर के सामान भी तोड़ने लगते हैं।
पता चला है कि महानगर में दो-एक जल्द ही सोशल मीडिया एडिक्ट के इलाज के लिए डी-एडिक्शन सेंटर खुलने जा रहा है। इससे साफ है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल अब बीमारी का रूप ले रहा है।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया आज लोगों के लिए बहुत ही आवश्यक हो गया है लेकिन इसका जो दूसरा पहलू है उससे बचने की जरूरत है क्योंकि जब किसी भी चीज का दुरुपयोग होने लगता है तो वो वरदान नहीं अभिशाप बन जाता है।
Dr Smita Mishra
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