एयरटेल इंडियन ग्रां प्री के पहले सत्र को अब बहुत कम दिन बाकी हैं| पर सवाल उठने लगे हैं की| दुनिया की दूसरी प्राइवेट ग्रां प्री अब आयोजको के लिए लाभ का सौदा होगी या फिर घाटे का क्योकि इसके सर्किट निर्माण पर जे पी एस आई ४० करोड़ डोलर की भारी रकम लगा चुका हैं|
खर्च ज्यादा:-जे पी एस आई ने दो से तीन करोड़ डोलर तो केवल (ऍफ़ ओ एम् ) को रेस होस्ट के लिए दी हैं| ४० करोड़ डोलर लगभग दो हजार करोड़ रूपये केवल रेस ट्रैक निर्माण पर खर्च किये हैं | उसने १०० से 200 करोड़ रूपये का टेक्स भी सरकार को दिया हैं |
टिकटों की आये :- ज्यादा आस टिकटों की ज्यादा बिक्री से भी हैं | जिसकी दर ढाई हजार से पैंतीस हजार रूपये राखी गयी हैं| बीस हजार टिकटों की ओसत बिक्री ग्रुप को दो अरब डॉलर की कमाई दे सकती हैं | जो ५५ बॉक्स कॉर्पोरेट के लिए हैं | उससे भी प्रति बॉक्स दो करोड़ के हिसाब से ११० करोड़ रूपये की जे पी एस आई कमाई कर लेगा|
प्रमुख स्पोंसर :-प्रमुख स्पोंसर एयरटेल से भी एसा सुनने में आया हैं की १०० करोड़ रूपये के आसपास मोती रकम जे पी एस आई को मिली हैं | एक आकलन के अनुसार यदि एक लाख लोग पांच हजार रूपये खान पान
पर खर्चते हैं तो २५ करोड़ रूपये की कमाई इस जरिये से होगी|
पार्किंग की कमाई:- २५ हजार तो व्हीलर और १५ हजार से ज्यादा कारो की पार्किंग जे पी एस आई को ५० करोड़ की कमाई करा सकती हैं | बाहरी ऐड से १०० करोड़ रूपये तो हैलीपैड पर लैंडिंग और उड़ानों से भी ५० करोड़ की आये का अनुमान हैं |
जे पी एस आई की रणनीति :- ग्रुप ने ऍफ़ वन के अलावा दुसरे स्पोर्ट्स आयोजन भी कराने को कहा हैं| ताकि खर्च को कम किया जा सके|
मूल्यांकन:- हालांकि रेस के शुरू होने से पहले ही इस खेल को भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ की प्रति व्यक्ति वार्षिक आये योजना आयोग २६ रूपये और ३२ रूपये तय करता हैं| वहां इस खेल की सफलता और जनता में इस खेल को मिलने वाले रेस्पोंस के प्रति संदेह प्रकट किया गया था| मगर फिर भी कोई भी बिजनस जोखिम पर ही कामयाब होता हैं| और फिर देर से सही भारतीय युवा रफ़्तार के दीवाने हैं जो अब नहीं तो बाद में में सही इसके प्रति अपनी रूचि अवश्य दिखाएंगे क्योकि भारत में इस खेल के टिकटों की ब्किरी अन्य विदेशी देशो के मुकाबले काफी बेहतर हैं| अन्य देशो में चाइना , मलेसिया , और अमेरिका से भारत की स्थिति बेहतर हैं| चाइना में दो लाख सीटो का स्टैंड खाली रहता हैं मलेशिया का भी ये ही हाल हैं| और अबुधाबी का भी अमेरिका में भी एशियाई देशो से जुदा हाल नहीं हैं| जहाँ दो लाख शमता वाले सर्किट में ५० हजार ही दर्शक आते हैं | केवल यूरोप के देशो में ही लोग अच्छी खासी संख्या में आते हैं जबकि भारत में एक लाख टिकटों पर ५५ हजार पहले ही बिक चुके हैं| जो एक अच्छा संकेत हैं |
हम यही आशा कर सकते हैं की जो दुर्दशा इस खेल की चीन में हुई थी, वो भारत में ना हो | लेकिन आयोजकों को भी समझना पड़ेगा की अगर इस खेल को उन्हें भारतीय बाज़ार में प्रचलित करना है, तो इस प्रथम भारतीय रेस के टिकटों के दाम कम करने होंगे, अन्यथा कहीं चीन की कहानी दोबारा न दोहरानी पड़े, जहाँ यह कहा गया था कि सारे टिकेट बिक गए हैं, लेकिन रेस के दिन खाली सीटें ज़्यादा देखने को मिली थीं |
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