एफ वन जितना ज्यादा खेल हैं उससे कहीं ज्यादा बिजनस आयोजन हैं| जहाँ फैन्स को हवा से बाते करती हुई कारे दिखती हैं| लेकिन इसके पीछे की इकोनोमी नहीं दिखती हैं |हर बड़े स्पोर्ट्स की तरह एफ वन को एक संघ देखता हैं| इसे (एफ .आई. ए) कहा जाता हैं | वैसे तो ये एस नॉन प्रोफिट संघ हैं| लेकिन हर साल ये अरबो रूपये कमाती हैं | इसने अपने व्यावसायिक अधिकार (१९७६ ) मैं इंग्लॅण्ड के बैंकिंग व्यवसायी बर्नी एल्स्टन के फ़ॉर्मूला वन विस्तार और प्रबंधन को बेच दिए थे| येही समूह एफ वन पर एफ वन प्रबंधन के जरिये नियंत्रण करता हैं|
मुनाफे में हिस्सेदारी : एफ वन से होने वाले मुनाफे में हर पार्टी का हिस्सा हैं| इसमें से किसी को एक पैसा भी ज्यादा नहीं मिलता हैं और न ही इसे नेकर किसी तरह का विवाद होता हैं| १०० रूपये के मुनाफे में से सिर्फ ४९ प्रतिशत एफ वन का चेहरा बन चुके बरने एल्स्टोने के एफ वन प्रमोशन एंड प्रबंधन के पास हैं| जबकि ५० प्रतिशत हिस्सा एफ आई ए के पास हैं | वहीँ टीमो को कुल लाभ में से महज़ एक फीसदी ही मिलता हैं|
सवाल पैसे का हैं : हो तो तय हैं| की वहाँ बड़ी वित्त कम्पनिया अपने माहिर सलहाकारो के साथ हाजिर हो जाती हैं | येही हाल एफ वन का भी हैं| यहाँ स्पोंसरशिप से लेकर प्रोफिट तक कंपनिया और बैंक शामिल हैं|
एफ वन का कमर्शिअल अधिकार खरीदने वाली कंपनी के सी ईओ भले ही बर्नी हो| लेकीन सारा ताम झाम बैंक और वित्त कंपनियों का ही हैं|( एफ ओ एम् ) के पास सिर्फ १० प्रतिशत अंश ही बर्नी और उसके परिवार के पास हैं | ७० फीसदी अंश डेल्टा टोपको नाम की वित्तजब सवाल पैसो का हो तो तय हैं की वहां बिजनस में माहिर लोगो का जमावड़ा हो जयेगा || मगर जब सवाल अरबो का कंपनी के नेतृत्व वाले ग्रुप के पास हैं | जिनमें कई बैंक शामिल हैं | डेल्टा टोपको अमरीकी शहर डेल्टा में हैं | जबकि बाकी के बैंक भी अमेरिका में ही हैं | बाकी के २० फीसदी अंश अमेरिकी नामी वित्त कंपनी जे पी मोर्गन के पास हैं |
एफ आई ए का रहस्य: (एफ आइ ए) न तो दुनिया में कही भी किसी भी तरह के निर्माण आयोजन में शामिल
हैं| और न ही वो अपने मुनाफे में किसी तरह की हिस्सेदारी करता हैं | दुनिया में एक भी रेस ट्रैक का मालिकाना हक़ (एफ आई ए) के पास नहीं हैं| जबकि रेस के आयोजन का खर्च भी आयोजक ही उठाते हैं| सिर्फ कुछ तकनिकी मामलो का खर्च ही एफ आई ए उठाता हैं| माना जाता हैं की एफ आई ए अरबो डॉलर के खजाने पर बैठा हैं |
कहाँ से आता हैं पैसा: वर्ष २००८ के आंकड़ो के मुताबिक़ हर साल एफ वन ३ अरब डॉलर की कमाई हैं| इस आंकड़ो में टीम और सर्किट को होने वाली कमाई शामिल नहीं हैं | एफ वन में पर काम की बोली लगाईं जाती हैं |(जे पी एस आई )ने भी इसी तरह एफ ओ एम् से बुद्ध अंतररास्ट्रीय सर्किट में एयर तेल ग्रां प्री कराने का अधिकार प्राप्त किया हर साल रेस आयोजित करने के लिए एफ ओ एम् कम से कम २ करोड़ डॉलर की रकम सर्किट के मालिक से लेता हैं | हर टीम को भी लाइसेंसे फीस एफ ओ एम् को अदा करनी पड़ती हैं | टी वी अधिकार से केकर शराब बेचने तक से मिलने वाली रकम इसमें शामिल हैं|
ये बरसाते हैं पैसा:(टीमे -१६०.५५ करोड़) ( डॉलर,कार स्पोंसर-८३.६करोड़ डॉलर ),( रेस आयोजक -४०३५करोद डॉलर )(टी वी अधिकार - ३८ करोड़ डॉलर), (मार्केटिंग २०.०९ करोड़ डॉलर), (टायर -७.२८ करोड़ डॉलर ),(सप्लायर -९करोद डॉलर ) ऑफ कार टीमे -५.८८५करोद डॉलर)
आप बिल्कुल सही हैं जब आप इसे ( फ़ॉर्मूला वन ) को एक बिज़नस आयोजन कह कर संभोधित करते हैं | जे.पि. ग्रुप जो इसे प्रस्तुत कर रहा है, उसका मूल उद्देश्य ही अपना रियल एस्टेट के बिज़नस को चमकाना है , खेल तो केवल एक माध्यम है उस लक्ष्य तक पहुँचने का |
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ReplyDeleteअकेले F1 को ही क्यों दोष दे???क्या सभी खेल आज पैसा बनाने में नहीं लगे हुए हैं???आज खेल के विकास से ज्यादा महत्त्व उस से होने वाले मुनाफे का है चाहे खेल कोई भी हो...
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